Sunday, December 19, 2010

हमारी ज़िन्दगी के सारे अन्दाज़े

हमारी ज़िन्दगी के सारे अन्दाज़े ग़लत निकले
दी हमने दस्तक पर, वह दरवाज़े निकले
नाज़ुमी* यह बता क्यों कर तेरे दावे ग़लत निकले?

सितारे मेरी ही किस्मत के क्यों सारे ग़लत निकले?
सवालों की जदी ऐसी लगाई ज़िन्दगानी ने,
जवाब आधों के सूझे ही नहीं, आधे ग़लत निकले.

- डा. राजेश रेड्डी

*astrologer

No comments:

Post a Comment