Friday, December 3, 2010

ज़माना देखे और

ज़माना देखे और दर्द-ए-दिल निचोड़ कर रख दूँ,
बहा ना ख़ून-ए-जिगर, रह गए हम महरूम,
हर पहलू पे अन्धी ज़ीस्त है सरमुख़्तियार,
हो गए बदगुमान जब होना था मशहूर|

- मुश्ताक़

No comments:

Post a Comment