Sunday, December 19, 2010

सदियाँ भूल जातीं हैं

सदियाँ भूल जातीं हैं अपनी रवानी,
एक पल तेरे रूठने से ऐ सितमगार,
तुझे अहसास कहाँ क़यामत ढाने का!

- मुश्ताक़

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