Sunday, March 27, 2011

सौदा

हर रात चादर पर बनी सिलवटों को देख
ठगा सा महसूस किया है मैंने भी|
इस इश्क़ के बाज़ार में
लुटा सा अहसास हुआ है मुझे भी|
सीने में दर्द, दिल में तड़प,
आँखों में नमी, सुलगे जज़बात|
झुलसे हुए हाथ|
इसके अलावा और कुछ न पाया|
कई बार हथेलियाँ पलट कर देखी|
कम्बख़्त खाली ही थीं|
खाली हाथ लौटने की तरक़ीब|
भीड़ में झूठमूठ मुस्कुराने की तहज़ीब|
खुद पर कम होता ऐतबार|
नाचता ज़मीर|
बहुत कुछ पाया ख़ुद को गवाँ कर,
इस कारोबार ए इश्क़ में,
पीछे मुडकर देखा तो तेरी तरह 'तन्हा'
मुझे भी लगा, सौदा बुरा न था|

- आशिक़ा 'तन्हा'

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