Wednesday, March 23, 2011

तकल्लुफ़

तुम मुझे कभी दिल कभी आँखों से पुकारो,
यह होंठों के तकल्लुफ़ तो ज़माने के लिए हैं

‍- अनजान

थक जाता हूँ मैं ज़माने के तकल्लुफ़ से,
दिलो-निगाह की ज़ुबाँ की जगाके तो देखो

- मुश्ताक़

No comments:

Post a Comment