Thursday, October 28, 2010

अचानक बरसती है ज़िन्दगी

समेटे नहीं सिमटती है ज़िन्दगी, बिखेरे नहीं बिखरती है ज़िन्दगी|
अगर बदगुमानी पे उतर आए कभी तो, सँवारे नहीं सँवरती है ज़िन्दगी|

रिश्तों पे उठ आएँ बेबाक बवन्डर, तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है ज़िन्दगी|
ज़ीस्त की हरियाली होते ही ख़त्म, मशक़्क़त के सहरा ढाते हैं सितम,
ख़ुशियों के फ़व्वारे क्यों न उभर आएँ, फिर भी मुँह फेरकर किलसती है ज़िन्दगी|

मुख़्तलिफ़ हालात की ज़िद्दी सोहबत से फैल जाए सूखापन,
बीच परेशानियों के भी यूँह ही अचानक बरसती है ज़िन्दगी|

- मुश्ताक़

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