Sunday, October 24, 2010

क्या बात है

कित्बोंआ के पन्ने पलटकर सोचता हूँ,
यूँ पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है,
तमन्ना जो पूरी हो ख़्वाबों में,
हक़ीक़त बन जाए तो क्या बात है,
लोग मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझे,
बिन मतलब कोई आए तो क्या बात है,
क़त्ल करके तो कोई भी ले जाएगा दिल मेरा,
कोई बातों से ले जाए तो क्या बात है,
जो शरीफ़ों की शराफ़त में बात ना हो,
एक शराबी कह जाए तो क्या बात है,
ज़िन्दा रहने तक तो ख़ुशी दूँगा सबको,
किसी को मेरी मौत पे ख़ुशी मिल जाए
तो क्या बात है!

- अज्ञात

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