Tuesday, November 15, 2011

तेरे बज़्म में आने से

तेरे बज़्म में आने से ऐ साक़ी,
चमके मैक़दा,
जाम-ए-शराब चमके,
ज़र्रा-ज़र्रा नज़र आए मह-पारा,
गोशा-गोशा मिस्ल-ए-आफ़्ताब चमके|

मेरी जान यह शान सुभान-अल्लाह,
तेरा हुस्न यूँ ज़ेर-ए-नक़ाब चमके,
जैसे शम्मा किन्दिले में रोशन,
जैसे बादलों में माहताब चमके|

मैख़ार हैं सारे उदास बैठे,
सूनी पडी है तेरे बग़ैर महफ़िल,
तू जो आए तो साग़र-ओ-जाम चमके,
तू पिलाए तो रंग-ए-शराब चमके|

ला-ए-ताब इतनी चश्म-ए-शौक क्यों कर,
देखे कौन उसके बेनक़ाब जलवे,
जिसके रूह-ए-दरक्शा में है सूफ़ी,
बढ़ के ज़ुल्फ़ से कहीं नक़ाब चमके!

- हीर

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