Tuesday, November 15, 2011

भुलाता लाख हूँ लेकिन

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं एलाही,
तर्क-ए-उल्फ़त वह क्यों कर याद आते हैं?

ना छेड ए हमनशीन कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़साने,
शराब-ए-बेहुदी के मुझको साग़र याद आते हैं|

नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं, तो अकसर याद आते हैं|

हक़ीक़त खुल गयी हसरत तेरे तर्क-ए-मुहब्बत की,
तुझ को तो अब वह पहले सी भी बढ़कर याद आते हैं|

- हसरत मोहानी

(पाकिस्तानी शा`यर, जिनके
"दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं,
एक दिलरुबा है दिल में जी हूरों से कम नहीं"
को महदी हसन ने ज़ुबाँ दी है)

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