Thursday, April 8, 2010

रिश्ता

बरहा तुम्हारी चुप्पी
घनी रात बनकर
छा जाती है|
तबतबतुम्हारे
हँसते अल्फ़ाज़
जुग्नू से फुदककर
अन्धेरे में
घुल जाते हैं|
वक़्त से शिकस्ता
यादें जवान होते ही,
फैल कर अफ़साना
बनती हैं|
ख़यालों से
महीनतर है हमारा
यह नाज़ुक रिश्ता|

- मुश्ताक़

(बरहा - often; जुग्नू - firefly; फुदकना - to frisk around; शिकस्ता - defeated; महीनतर - finer)

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