Tuesday, August 17, 2010

क्या बात है

किताबों के पन्ने पलट के सोचता हूँ, यूँ पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है
तमन्ना जो पूरी हो ख़्वाबों में, हक़ीक़त बन जाए तो क्या बात है
लोग मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझे, बिन मतलब कोई आए तो क्या बात है
क़त्ल कर के तो कोई भी ले जाएगा दिल मेरा, कोई बातों से ले जाए तो क्या बात है
जो शरीफ़ों की शराफ़त में बात न हो, एक शराबी कह जाए तो क्या बात है
ज़िन्दा रहने तक तो खुशी दूँगा सबको, किसी को मेरी मौत पे खुशी मिल जाए तो क्या बात है

अज्ञात

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