Sunday, January 24, 2010

दरिया

क्यों न ज़हन तार तार हो जाए
क्यों न दीमाग़ बार हा खो जाए
क्यों न दिल के टुकड़े हज़ार हो जाएँ,
जज़्बात ओ अल्फाज़ का दरिया बहता रहेगा

- मुश्ताक़

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