Wednesday, November 4, 2009

तुम्हारी आ‍ँखों में जो कशिश है

Version I

तुम्हारी आ‍ँखों में जो कशिश है,
मेरे दिल की वही तो ख़लिश है,
जलना तड़पना झूरना सुकड़ना सिमटना
बस मेरी रूह की समझो वह रविश है,
आफ़तों की लहरें और हमारी तिरछी चाल,
समझो वही तो ज़ुम्बिश है,
ज़फ़कशी गले लगाने कहाँ बदनसीबी हुआ,
मेरे लफ़्ज़ों को निखारे वही तपिश है
रहे ग़फिल ओ मदहोश उम्रभर मुश्ताक़,
यह हकीकत, वही तो नालिश है.

- मुश्ताक़

Version II

तुम्हारी आ‍ँखों में जो कशिश है,
मेरे दिल की वही तो ख़लिश है,
जलना तड़पना झूरना सुकड़ना सिमटना
बस मेरी रूह की समझो वह रविश है,
ज़फ़कशी गले लगाने कहाँ बदनसीबी हुआ,
मेरे लफ़्ज़ों को संवारे वही तपिश है
रहे ग़फिल ओ मदहोश उम्रभर मुश्ताक़,
यह हकीकत, वही तो नालिश है.

- मुश्ताक़

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