तुमको सामाजिक बन्धनों के तार,
प्रेमोल्लास से तरभर पुत्री,
सहिष्णुता सभर भगिनी,
धीरज की पर्वत-शीलसी भ्राता
आदि पाठ भजनेसे,
कर्तव्य और निष्ठापूर्ण क्रियाकर्म से
क्षणभंगुर मुक्ति प्राप्य हो,
तो कुछ पल आत्मीयता
और काव्यात्मिक रचन पाठन ग्रहण,
मिलन के शक्य हैं?
- Not sure whether this is Max's or Ashiqua's.
Thursday, October 22, 2009
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