शमा हो तुम, मुझे ढूँढोगी,
जला हूं मैं, आँखें मून्दोगी
ख़ाक होकर मिट जाऊँ जब,
मेरे नक्षेपा बर राहें ढूँढोगी
अकसर वजूद तरतर...
(Incomplete)
Thursday, October 22, 2009
मेरे ख़्वाबिदा ज़हन पे
मेरे ख़्वाबिदा ज़हन पे बर्क़ गिराओ, यह हक़ है तुम्हें;
मेरे फूलों से नाज़ुक सपनों पे बर्फ़ जमाओ, यह हक़ है तुम्हें|
सन्नाटे सफ़ेद चादर से फैलकर जज़बातों का गला घोंटें
तब तसव्वुर-ओ-हक़ीक़त में फ़ासले मिट जाते हैं,
दर्द एक हद के पार बढ़ चल तो आदतुन मजबूरी बन जाता है|
मेरे ज़हन में ख़्वाबिदा अरमानों को जगाओ, यह हक़ है तुम्हें;
मेरे ख़्वाबों में पयवस्त ख़्वाहिशें बहलाओ, यह हक़ है तुम्हें|
- मुश्ताक़
मेरे फूलों से नाज़ुक सपनों पे बर्फ़ जमाओ, यह हक़ है तुम्हें|
सन्नाटे सफ़ेद चादर से फैलकर जज़बातों का गला घोंटें
तब तसव्वुर-ओ-हक़ीक़त में फ़ासले मिट जाते हैं,
दर्द एक हद के पार बढ़ चल तो आदतुन मजबूरी बन जाता है|
मेरे ज़हन में ख़्वाबिदा अरमानों को जगाओ, यह हक़ है तुम्हें;
मेरे ख़्वाबों में पयवस्त ख़्वाहिशें बहलाओ, यह हक़ है तुम्हें|
- मुश्ताक़
तुमको ...
तुमको सामाजिक बन्धनों के तार,
प्रेमोल्लास से तरभर पुत्री,
सहिष्णुता सभर भगिनी,
धीरज की पर्वत-शीलसी भ्राता
आदि पाठ भजनेसे,
कर्तव्य और निष्ठापूर्ण क्रियाकर्म से
क्षणभंगुर मुक्ति प्राप्य हो,
तो कुछ पल आत्मीयता
और काव्यात्मिक रचन पाठन ग्रहण,
मिलन के शक्य हैं?
- Not sure whether this is Max's or Ashiqua's.
प्रेमोल्लास से तरभर पुत्री,
सहिष्णुता सभर भगिनी,
धीरज की पर्वत-शीलसी भ्राता
आदि पाठ भजनेसे,
कर्तव्य और निष्ठापूर्ण क्रियाकर्म से
क्षणभंगुर मुक्ति प्राप्य हो,
तो कुछ पल आत्मीयता
और काव्यात्मिक रचन पाठन ग्रहण,
मिलन के शक्य हैं?
- Not sure whether this is Max's or Ashiqua's.
Creativity
'Creativity requires
to let go of
certainties.
Conditions for
creativity are, to be
puzzled, to
concentrate, to
accept conflict, and
tension, and be born
- Max
(I think this is incomplete.)
to let go of
certainties.
Conditions for
creativity are, to be
puzzled, to
concentrate, to
accept conflict, and
tension, and be born
- Max
(I think this is incomplete.)
U
When U DO
ANYTHING NEW.
first people LAUGH
at u.
Then they
CHALLENGE u.
Then they WATCH u
succeed.
And then?
"THEY WISH THEY
WERE LIKE U". .
- Max
ANYTHING NEW.
first people LAUGH
at u.
Then they
CHALLENGE u.
Then they WATCH u
succeed.
And then?
"THEY WISH THEY
WERE LIKE U". .
- Max
Saturday, October 17, 2009
नज़रें मिलते ही...
नज़रें मिलते ही एक दीवार सी खड़ी हो जाती है,
ज़हन की ख़्वाहिश एक मीनार सी बड़ी हो जाती है,
कली से गुल, गुल से फल सिरशता है पर,
तसव्वुर जगते ही पूरे गुलिस्तान की ख़ालिश एक कली हो जाती है,
ज़माना ख़ुद चले सर के बल तब,
सारी नेकी भी एक बड़ी हो जाती है,
अफ़्साने मेरे इर्द गिर्द फूटते रहते हैं मुसलसल तब,
मेरी दास्तान भी एक कड़ी हो जाती है,
मुख़तलिफ़ हवाएँ बवन्डर उठ करें तब,
'मुश्ताक़', ज़िन्दगी के शजर की घटा सिर्फ एक चड़ी हो जाती है|
- मुश्ताक़
ज़हन की ख़्वाहिश एक मीनार सी बड़ी हो जाती है,
कली से गुल, गुल से फल सिरशता है पर,
तसव्वुर जगते ही पूरे गुलिस्तान की ख़ालिश एक कली हो जाती है,
ज़माना ख़ुद चले सर के बल तब,
सारी नेकी भी एक बड़ी हो जाती है,
अफ़्साने मेरे इर्द गिर्द फूटते रहते हैं मुसलसल तब,
मेरी दास्तान भी एक कड़ी हो जाती है,
मुख़तलिफ़ हवाएँ बवन्डर उठ करें तब,
'मुश्ताक़', ज़िन्दगी के शजर की घटा सिर्फ एक चड़ी हो जाती है|
- मुश्ताक़
रिश्ते तो हज़ारों हैं
रिश्ते तो हज़ारों हैं, बहतरीन नाता यारी का
जिसमें वह शराफ़त है, अज़ आफ़्रीन दावा समा'ईन का
ना ज़ीनत है अहम ना नादिर ज़ीस्त में
इसमें तो नज़ाकत है, आलातरीन म'ब'ईन का|
- मुश्ताक़
जिसमें वह शराफ़त है, अज़ आफ़्रीन दावा समा'ईन का
ना ज़ीनत है अहम ना नादिर ज़ीस्त में
इसमें तो नज़ाकत है, आलातरीन म'ब'ईन का|
- मुश्ताक़
Tuesday, October 13, 2009
जीवन म्हणजे
जीवन म्हणजे अळूच्या पानावरील डाव आहे..
टिकला तर मोटी नाहीतर माटी आहे..
तुझे जीवन नेहमी मोटी असु दे..
आणी हा मोटी नेहमी आप्ल्या
मैत्रीच्या शिप्ळ्यात वसु दे|
- मुश्ताक़
टिकला तर मोटी नाहीतर माटी आहे..
तुझे जीवन नेहमी मोटी असु दे..
आणी हा मोटी नेहमी आप्ल्या
मैत्रीच्या शिप्ळ्यात वसु दे|
- मुश्ताक़
शम्म ए फरोज़ान
शम्म ए फरोज़ान हूँ मैं,
मेरी हस्ती मिटाने के लिए
एक साँस ही काफ़ी है,
लेकिन फिर,
इन ज़ालिम अन्धेरों का सीना
कौन चीरेगा?
- मुश्ताक़
मेरी हस्ती मिटाने के लिए
एक साँस ही काफ़ी है,
लेकिन फिर,
इन ज़ालिम अन्धेरों का सीना
कौन चीरेगा?
- मुश्ताक़
ना आस ना उम्मीद
ना आस ना उम्मीद फिर भी जिए जाते हैं,
जान बूझ के सागर का खारा पानी पिए जाते हैं|
जिनके लिए हुआ यह हाल अपना
वो बनके मेहमान ख़्वाबों में चले आते हैं|
- मुश्ताक़
जान बूझ के सागर का खारा पानी पिए जाते हैं|
जिनके लिए हुआ यह हाल अपना
वो बनके मेहमान ख़्वाबों में चले आते हैं|
- मुश्ताक़
जब कभी
जब कभी जज़बात के बादल बरसते हैं
तब कभी अरमान के दामन सुलगते हैं|
घमासान जंग छिड़ते हैं ज़हन में
तब कभी अल्फाज़ के साँस फुलते हैं||
सुकून की चादर फैलती है चाँदनी की तरह
तब यहीं सदमात के सामान खुलते हैं|
ज़ीस्त बयान करें भी तो कैसे 'मुश्ताक़'
जब कभी ख़यालात के आयाम उलझते हैं||
- मुश्ताक़
तब कभी अरमान के दामन सुलगते हैं|
घमासान जंग छिड़ते हैं ज़हन में
तब कभी अल्फाज़ के साँस फुलते हैं||
सुकून की चादर फैलती है चाँदनी की तरह
तब यहीं सदमात के सामान खुलते हैं|
ज़ीस्त बयान करें भी तो कैसे 'मुश्ताक़'
जब कभी ख़यालात के आयाम उलझते हैं||
- मुश्ताक़
तुम पिलाओ निगाहोँ से
तुम पिलाओ निगाहोँ से, आज मुझे हिचकी आ जाए,
ना जन्नत ना दोज़ख़, मन्ज़िल बीच की मिल जाए,
आब ए ज़ीस्त में घौटे लगाता हूँ, शायद, कहीं,
मोती से पुरनूर छीप सी मिल जाए|
- मुश्ताक़
ना जन्नत ना दोज़ख़, मन्ज़िल बीच की मिल जाए,
आब ए ज़ीस्त में घौटे लगाता हूँ, शायद, कहीं,
मोती से पुरनूर छीप सी मिल जाए|
- मुश्ताक़
बारिश बीत गई
बारिश बीत गई फिर भी मन बरसे,
तू पैमाना पिला गई फिर भी मूँह तरसे|
Good morning. Harshal wrote this. Writes lyk a veteran, doesn't he? Whew! - Max
तू पैमाना पिला गई फिर भी मूँह तरसे|
Good morning. Harshal wrote this. Writes lyk a veteran, doesn't he? Whew! - Max
तीखे अल्फ़ाज़
'आह, वो तुमसे प्यार करती है'
यह तीखे अल्फ़ाज़ समझो
आतिशफ़िशान की
ख़ाक़ का वरक़ उखाड़ चले|
तुम तो भीगी रात में
घुल गयीं, और उसने कहा,
'उसकी आँख में तुम्हारे लिए
मान के अलावा बहुत कुछ है'|
बेनूर आँखवाला में,
जवाब टटोलता रहा हूँ|
- मुश्ताक़
यह तीखे अल्फ़ाज़ समझो
आतिशफ़िशान की
ख़ाक़ का वरक़ उखाड़ चले|
तुम तो भीगी रात में
घुल गयीं, और उसने कहा,
'उसकी आँख में तुम्हारे लिए
मान के अलावा बहुत कुछ है'|
बेनूर आँखवाला में,
जवाब टटोलता रहा हूँ|
- मुश्ताक़
ना भूल सकना
ना भूल सकना शाद नशाद क़िस्से ज़िन्दगानी के
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
ना खुल सकना हाल बहरहाल इतनी बेज़ुबानी से
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
- मुश्ताक़
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
ना खुल सकना हाल बहरहाल इतनी बेज़ुबानी से
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
- मुश्ताक़
यह रिश्ता
जाने अनजाने बन जाता है यह रिश्ता
गाने अफ़्साने बुन लेता है यह रिश्ता
अनजाने में सूखने दे वह महज़ इनसान,
जाने समझे बस जमे रहे वह फ़रिश्ता|
-मुश्ताक़
गाने अफ़्साने बुन लेता है यह रिश्ता
अनजाने में सूखने दे वह महज़ इनसान,
जाने समझे बस जमे रहे वह फ़रिश्ता|
-मुश्ताक़
poltergeists
If you expect me to
fail, despite
earth-shattering
efforts, I will. If
you see an angelic
apparition twinning
from my aura, I'll
rise from depths of
city-sewers to fly up
and touch they sky.
We are all
poltergeists to
varying degrees. If
my blood tastes
bitter, our senses
need
disentanglement.
(wip)
- Max
fail, despite
earth-shattering
efforts, I will. If
you see an angelic
apparition twinning
from my aura, I'll
rise from depths of
city-sewers to fly up
and touch they sky.
We are all
poltergeists to
varying degrees. If
my blood tastes
bitter, our senses
need
disentanglement.
(wip)
- Max
I draw my own lines
If u hv a taut spine,
u're cocky. If
flexible, u're a
bloody doormat. I
draw my own lines,
my mirror remains
myopic.
- Max
u're cocky. If
flexible, u're a
bloody doormat. I
draw my own lines,
my mirror remains
myopic.
- Max
whirring fit
Oftn hv 3 meals in
5star hotels but
walk 10KMs hme, no
bus fare jingles in
my frayd jeans. Not
ambition avarice nor
aspiration bt, fight
keeps me whirrng
fit.
- Max
5star hotels but
walk 10KMs hme, no
bus fare jingles in
my frayd jeans. Not
ambition avarice nor
aspiration bt, fight
keeps me whirrng
fit.
- Max
A kind of lethargy
A kind of lethargy
at times oozes out,
spinning a fibrous
cocoon all ard me.
Words pop out
bursting like
bubbles, emotions
ricochet like
lightning streaks.
A link goes
missing. I get queer
looks.
- Max
at times oozes out,
spinning a fibrous
cocoon all ard me.
Words pop out
bursting like
bubbles, emotions
ricochet like
lightning streaks.
A link goes
missing. I get queer
looks.
- Max
Morning
Holed up insde a
lean-to,I watch d
mornng
sleep-walkrs,
jiggling joggers n
cootchie cooing
cples. General Sun
lies drunk behnd
layers upon layers
of grimfaced, evn
faceless clouds. My
fellow
limb-draggers, frm
louche giants to
svelte starry-eyed
teens, scatter like
fearridden fowls,
soon as sky sprays.
- Max
lean-to,I watch d
mornng
sleep-walkrs,
jiggling joggers n
cootchie cooing
cples. General Sun
lies drunk behnd
layers upon layers
of grimfaced, evn
faceless clouds. My
fellow
limb-draggers, frm
louche giants to
svelte starry-eyed
teens, scatter like
fearridden fowls,
soon as sky sprays.
- Max
I grope for a message
Oh she's in love with
u - ur shrill
unpeeling of
lavadust layer
smarted. Whn u
dissolved in the
soggy night, she
chirped -besides
respect there's lot
else for u in her eyes.
Like a blind man, I
grope for a message
in Braille.
- Max
u - ur shrill
unpeeling of
lavadust layer
smarted. Whn u
dissolved in the
soggy night, she
chirped -besides
respect there's lot
else for u in her eyes.
Like a blind man, I
grope for a message
in Braille.
- Max
Gurgling brook
You're a gurgling
brook, cascading
over stones. Cats
crave for silver
streaks, but, hardly
ever dive into the
cool water. We stare
in electrified
silence.
- Max
brook, cascading
over stones. Cats
crave for silver
streaks, but, hardly
ever dive into the
cool water. We stare
in electrified
silence.
- Max
Your silence
Your silence is a welcome oasis
in my cacophony-ruined world,
It's a minor eruption on my skin
if your evasive jelly of indecision
needs a rupture,
and, a livid perennial wound if
you emotion riches fall by the
roadside,
only you sculpt senseturns silence
out of oblivion.
- Max
in my cacophony-ruined world,
It's a minor eruption on my skin
if your evasive jelly of indecision
needs a rupture,
and, a livid perennial wound if
you emotion riches fall by the
roadside,
only you sculpt senseturns silence
out of oblivion.
- Max
Sweating like swine
Sweating like swine or -
perspiring like pigs. Why does
one sweat like a pig?
- Max
perspiring like pigs. Why does
one sweat like a pig?
- Max
रस्म ओ राह
शेख़ साहब से रस्म ओ राह न की
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न की
- (by a renowned Urdu poet, whose name I forget,
sent by Max)
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न की
- (by a renowned Urdu poet, whose name I forget,
sent by Max)
Monday, October 12, 2009
The highest reward
The highest reward
for a person's toil is
not what he gets
for it
but
what he becomes by it.
- Max
for a person's toil is
not what he gets
for it
but
what he becomes by it.
- Max
ज़िन्दगी लहर थी
ज़िन्दगी लहर थी आप साहिल हुए,
न जाए कैसे हम आपके काबिल हुए,
न भूलेंगे हम उस हसीन पल को,
जब आप हमारी ज़िन्दगी में शामिल हुए
- मुश्ताक़
न जाए कैसे हम आपके काबिल हुए,
न भूलेंगे हम उस हसीन पल को,
जब आप हमारी ज़िन्दगी में शामिल हुए
- मुश्ताक़
ख़ामोशीने तुम्हें...
ख़ामोशीने तुम्हें
ग़र्क़ क्या किया,
बातों बातों में या
तुम्ही ने बेसाख़्ता
घौटा लगाया एक
सुनसान समन्दर
में?
क्यों मेरे
ज़हन में
लब्ज़ ओ जज़बात
शिद्दतसे लर्ज़े
थर्राएत तड़पे फिर
धड़कर आख़िरान
उबलकर खौलने
लगे?
यह दिल एक
पुश्तैनी देग़ है
जिस आनजान
शैतानोंका कबीला
दूरसे मुसलसल हिलाता
रहता है,
अनगिनत ज़ायकेदार
झोंके आते रहते
हैं, सर्द हवाएँ
कानाफूसी करतीं
रहतीं हैं तो कभी
रूहकी बेअवाज़
चितकार या जले दिलकी
भपकी बेधड़क उठती है|
यही वह ढोल
तानसे पिटवाती
ज़िन्दगी है, या फिर
मेरे ख़्वाबों की
दरारें एकसाथ
मिलकर ज़िन्दगीका
नक़ाब औढ़े, गले
लग रहे हैं?
- मुश्ताक़
ग़र्क़ क्या किया,
बातों बातों में या
तुम्ही ने बेसाख़्ता
घौटा लगाया एक
सुनसान समन्दर
में?
क्यों मेरे
ज़हन में
लब्ज़ ओ जज़बात
शिद्दतसे लर्ज़े
थर्राएत तड़पे फिर
धड़कर आख़िरान
उबलकर खौलने
लगे?
यह दिल एक
पुश्तैनी देग़ है
जिस आनजान
शैतानोंका कबीला
दूरसे मुसलसल हिलाता
रहता है,
अनगिनत ज़ायकेदार
झोंके आते रहते
हैं, सर्द हवाएँ
कानाफूसी करतीं
रहतीं हैं तो कभी
रूहकी बेअवाज़
चितकार या जले दिलकी
भपकी बेधड़क उठती है|
यही वह ढोल
तानसे पिटवाती
ज़िन्दगी है, या फिर
मेरे ख़्वाबों की
दरारें एकसाथ
मिलकर ज़िन्दगीका
नक़ाब औढ़े, गले
लग रहे हैं?
- मुश्ताक़
गुलिस्तान की पहचान
गुलिस्तान की पहचान न कर पाया ज़माना
माली के पसीने को मामूली समझा
पत्थर की सिल्वटों पे इतराते रहे
पत्थर तोड़नेवाले को मामूली समझा
- मुश्ताक़
माली के पसीने को मामूली समझा
पत्थर की सिल्वटों पे इतराते रहे
पत्थर तोड़नेवाले को मामूली समझा
- मुश्ताक़
ख़ामोशी
क्या ख़ाक समझते हम ख़ामोशी
धुआँदार ढेर थी जब नामोशी
मुँह के बल गिरने का एक फ़न है
हर बार मुस्कुराते उठना है बाहोशी
- मुश्ताक़
धुआँदार ढेर थी जब नामोशी
मुँह के बल गिरने का एक फ़न है
हर बार मुस्कुराते उठना है बाहोशी
- मुश्ताक़
Your silence
Your silence like
mid-day sun,
hardens my inner
doubts like fish
dried on a neglected
beach.
- Max
mid-day sun,
hardens my inner
doubts like fish
dried on a neglected
beach.
- Max
Green monsters
11...Green monsters
grew in size,
suddenly u wre
besiegedby admirers
frm sporting cousins
to tall dark likeble
scholars u bumped
in2 at ashrams. I
ate my heart
- Max
grew in size,
suddenly u wre
besiegedby admirers
frm sporting cousins
to tall dark likeble
scholars u bumped
in2 at ashrams. I
ate my heart
- Max
They watch
They watch,
not gawking,
villagers wid
monochrome unruf-
fled lives, as
polychrome bruit
descends, a swoosh
of arrival. Citybred
moths flit abt
bustling, alien
syllables clatterng,
unable to absorb-
me too.
- Max
not gawking,
villagers wid
monochrome unruf-
fled lives, as
polychrome bruit
descends, a swoosh
of arrival. Citybred
moths flit abt
bustling, alien
syllables clatterng,
unable to absorb-
me too.
- Max
My mind cannibalizes
At twenty my best buddies
were in their infirm eighties,
At sixty my bosom pals
are in their explosive twenties -
the perennial outisder.
My mind cannibalizes.
- Max
were in their infirm eighties,
At sixty my bosom pals
are in their explosive twenties -
the perennial outisder.
My mind cannibalizes.
- Max
परवाज़ तुम्हारी रुहानियत में शौक़ परिन्दों
मेरे सपनों पे तुमने राज किया है,
कभी रूह को अफ़ज़ान तो कभी दिल को नाराज़ किया है|
तुम हो क्या आख़िर,
कोई भटकी शहजादी या आसमान से गिरी अप्सरा?
बड़ी मुशक़्क़त से देखा है
इस तिलस्मी शख़्सियत को ज़र्रा बर ज़र्रा,
एक हल्क़ी सी बर्क़ गिरा दो अब,
अपने रूह की झलक दिखा दो अब|
मेरे ज़हन में जंगल के जंगल शोला-नशीन हैं,
और आपकी हस्ती में पयवस्त
फ़रिश्ता परदा-नशीन है|
बस इन शरबती आँखों से एक-आध
क़त्रा सरक आए आब-ए-ज़मज़मा का,
यह जंग-ए-जलाली सा तकाज़ा सुलझ जाए हर दम का|
ज़माना क्यों न हो अंजुमन ख़ौफ़नाक दरिन्दों की,
है जो परवाज़ तुम्हारी रुहानियत में शौक़ परिन्दों की|
- मुश्ताक़
कभी रूह को अफ़ज़ान तो कभी दिल को नाराज़ किया है|
तुम हो क्या आख़िर,
कोई भटकी शहजादी या आसमान से गिरी अप्सरा?
बड़ी मुशक़्क़त से देखा है
इस तिलस्मी शख़्सियत को ज़र्रा बर ज़र्रा,
एक हल्क़ी सी बर्क़ गिरा दो अब,
अपने रूह की झलक दिखा दो अब|
मेरे ज़हन में जंगल के जंगल शोला-नशीन हैं,
और आपकी हस्ती में पयवस्त
फ़रिश्ता परदा-नशीन है|
बस इन शरबती आँखों से एक-आध
क़त्रा सरक आए आब-ए-ज़मज़मा का,
यह जंग-ए-जलाली सा तकाज़ा सुलझ जाए हर दम का|
ज़माना क्यों न हो अंजुमन ख़ौफ़नाक दरिन्दों की,
है जो परवाज़ तुम्हारी रुहानियत में शौक़ परिन्दों की|
- मुश्ताक़
ख़ौफ़ से अलविदा
आँखें तो खुली हैं, पर ज़हन है ख़्वाबिदा
शायद यही वजह से तसव्वुर है जाविदा
सैलाब-ओ-शमात क्या हावी हो जाएँ
यक़ीन जब कहे ख़ौफ़ से अलविदा अलविदा|
- मुश्ताक़
शायद यही वजह से तसव्वुर है जाविदा
सैलाब-ओ-शमात क्या हावी हो जाएँ
यक़ीन जब कहे ख़ौफ़ से अलविदा अलविदा|
- मुश्ताक़
A poet's death
The poet need not
wait for death; he's dead when ink -
has dried on his nib.
- me
'Every poet writes
only one poem in an
entire lifetime'
- Rainer Maria von Rilke
(quoted by Max)
wait for death; he's dead when ink -
has dried on his nib.
- me
'Every poet writes
only one poem in an
entire lifetime'
- Rainer Maria von Rilke
(quoted by Max)
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