Tuesday, August 2, 2011

मुँह छिपाते निकले थे

मुँह छिपाते निकले थे तफ़री पर ज़ीस्त की राहों में,
के पागलों से बादलों ने अचानक सहारा दे दिया,
आये वक़्त मुँह फेर लेना जिनकी तासीर है,
बेशर्म आफ़ताब नंगेपन का जलवा बार-बार कर रहा है|

- मुश्ताक़

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