Wednesday, February 9, 2011

न हो दीवानगी तो

न हो दीवानगी तो चाहत क्या है,
न हो आवारगी तो जन्नत क्या है |
दिल निचोड़ना पड़ता है मुहब्बत में,
न हो बन्दगी तो खिदमत क्या है ||

- मुश्ताक़

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