Wednesday, September 8, 2010

मानो या न मानो

मानो या न मानो,
यह ख़ुशनुमा समा आपसे वबस्ता है|
मेरे अन्दर बेशुमार हरकतों का सुस्ताना,
अनगिनत बेनाम वेहशतों का घुल जाना,
आपकी आमद से वबस्ता है|
मेरे सहमे दिल में हज़ार ज़ुबानें फूट निकलना,
मेरे वजूद के हर रोंगटे पे आँख खुल पड़ना,
मेरे सुखी ज़िन्दगी और रंगीन ख़्वाबों की
विलायत के बीच सुरंग खुलना,
आप ही की बदौलत है|
नज़र घुमाऊँ और यह जलवे कहीं
ग़ायब न हो जाएँ, ख़ौफ़ सा लगता है|
वह डर भी आपकी वजह से ही है|

- मुश्ताक़

No comments:

Post a Comment