Saturday, May 26, 2012

फिर 'तन्हा' मौत आई...


फिर 'तन्हा' मौत आई...

दबे पाँव सरकती हुई, हौले हौले रेंगती हुई,
नगाड़ों की थाप से गूँजती, जंगल की ख़ामोशी को चीरती हुई
फिर मौत आई...

कलरों की कलाई सी काली, खन्डर की तरह ख़ाली,
लहरों से बदमस्त नोचती, अय्यारों सी चालें सोचती,
फिर मौत आई...

कुछ कुछ अपनों सी अजनबी, कुछ परायों सी मतलबी,
थोड़ी ख़ुद सी वफ़ादार, थोड़ी उदू सी मक्कार,
फिर मौत आई...

मैंने सबब पूछा आने का तो मुझको बहलाने लगी,
क़त्ल करने से पहले कम्बख़्त सहलाने लगी,
मेरे आँसू बहे तो वह मुस्कुराने लगी,
साथ चलने के लिए मुझको मनाने लगी,

बड़ी मुश्किलों से बेअकल मना यह दिल,
है ज़रूरी सफ़र, चलो चलें ठाना यह दिल,
हर दफ़े की तरह अबके धोखा ना दे,
रबता है यही अबके चलो फिर चलें,

मन्ज़िलें हैं कई रास्ता एक मगर,
कर गए कई ज़िन्दगी का सफ़र,
कोई समझा नहीं इस बन्दगी का असर...

फिर आना होगा यहीं लौटकर,
और फिर मौत आएगी यूँ ही दबे पाँव सरकते हुए,
जैसे देखो अभी आई है...
फिर 'तन्हा' मौत आई है...

- आशिक़ा 'तन्हा'

No comments:

Post a Comment