Saturday, May 26, 2012

ज़ख़म-ए-जिगर


ज़ख़म-ए-जिगर सा था, यह अफ़साना मेरा,
कैसे मुनासिब था, यूँ रुक जाना मेरा,
ना दुआ ना सलाम, ना कोई अलविदा,
कैसे मु'आफ़िक हो, यूँ मिट जाना तेरा

- मुश्ताक़

No comments:

Post a Comment