Thursday, May 17, 2012

ज़माने का दिवाला

चहरा है रौशन, दिल है काला,
कैसे दरिन्दों को हमने है पाला,
चाक गिरेबान में झाँकने की हिम्मत भी नहीं,
क्यों ना निकले ज़माने का दिवाला

- मुश्ताक़

No comments:

Post a Comment