Friday, December 4, 2009

चार लम्हें

मुट्ठी में कैद चार लम्हें, सामने फ़नाह के इमकानात
वक़्त की ताक़त क्या ख़ाक समझें
फिसले जो नौनिहाल से बुज़ुर्गी तक बेहोशी में|

- मुश्ताक़

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