किसी शायर ने मौत को क्या खूब कहा:
ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा,
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे,
कोई तोहफ़ा न मिला आज तक मुझे
और आज फूल ही फूल दिये जा रहे थे,
तरस गया मैं किसी के हाथ से दिये वह एक कपडे को,
और आज नए नए कपडे ओढाये जा रहे थे,
दो कदम साथ न चलने को तैयार था कोई,
और आज काफ़िला बनाकर जा रहे थे...
आज पता चला कि मौत इतनी हसीन होती है,
कम्बख़्त हम तो यूँ ही जिए जा रहे थे!
Sunday, December 12, 2010
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