Whtz Max?
A metallurgist.
How dz dat sound?
Bald n tantalizing?
A lollipop?
A 2" hole in a
bedsheet showing
my ear n sm hair?
- Max
Wednesday, April 21, 2010
Storm
Like a farmer I squat and watch life's sky
unceasingly changing hues. Clouds barge in
tantalizingly close, self-possessed, unbucking,
and in time, slither away. The dark , massive,
brooding ones turn the air moist and electric,
the thin wisps seem to shoot down and hug me.
My fevered anticipation, shudders when dry
static crackles. I ball up with clustered
worries. My seeds will rot. Pastures of heaven
won't ever grow here.
- Max
unceasingly changing hues. Clouds barge in
tantalizingly close, self-possessed, unbucking,
and in time, slither away. The dark , massive,
brooding ones turn the air moist and electric,
the thin wisps seem to shoot down and hug me.
My fevered anticipation, shudders when dry
static crackles. I ball up with clustered
worries. My seeds will rot. Pastures of heaven
won't ever grow here.
- Max
Maps
Sitting beneath the starless skies,
I stare at the urban maze.
Do you know the way out of this human mess?
A Muezzin's call for prayer resonates
in the dark air from a nearby mosque.
Will rolling out the prayer mat this time
find me my lost map?
- Nuzhat
The only maps we
ought to follow are hidden
deep in our genes.
- Max
I stare at the urban maze.
Do you know the way out of this human mess?
A Muezzin's call for prayer resonates
in the dark air from a nearby mosque.
Will rolling out the prayer mat this time
find me my lost map?
- Nuzhat
The only maps we
ought to follow are hidden
deep in our genes.
- Max
Me
The child in me is by now
a monkey on my back.
Its self-amusement
generates a darker shade
of ugliness in people.
The teenager inside,
crouching but defiant
has been locked up in an
abandoned toilet
where lumps of reality
crawl and sting.
The mellow middle-aged man
in me lies inert
inside a gulag where devils
would fear to tread.
Cerebral dazzle transcribes
sense in an invisible ink.
Now I'm accosted by fatigue,
aches and heartbreaks,
touts out for petty blackmail.
- Max
a monkey on my back.
Its self-amusement
generates a darker shade
of ugliness in people.
The teenager inside,
crouching but defiant
has been locked up in an
abandoned toilet
where lumps of reality
crawl and sting.
The mellow middle-aged man
in me lies inert
inside a gulag where devils
would fear to tread.
Cerebral dazzle transcribes
sense in an invisible ink.
Now I'm accosted by fatigue,
aches and heartbreaks,
touts out for petty blackmail.
- Max
Thursday, April 8, 2010
ख़िलवत हो...
ख़िलवत हो, शराब हो
और हो माशूक सामने,
झाहिद! तुझे कसम है
जो तू हो तो क्या करे?
- नवाब इमानुल्लाह ख़ाँ
और हो माशूक सामने,
झाहिद! तुझे कसम है
जो तू हो तो क्या करे?
- नवाब इमानुल्लाह ख़ाँ
Writing and thinking
If I write but don't think,
I'm a clerk,
If I don't write but do think,
I'm shooting in the dark,
If I don't write and don't think,
I'm living life daily, for a lark.
- Max
I'm a clerk,
If I don't write but do think,
I'm shooting in the dark,
If I don't write and don't think,
I'm living life daily, for a lark.
- Max
Faith
I will not doubt,
though sorrows
fall like rain, and
troubles swarm like
bees about a hive;
Ishall believe the
heights for which I
strive are only
reached by anguish
and by pain; and
though I
groan and tremble
with my crosses, I
yet shall see through
my severest losses,
the greatr pain.
- Nuzhat
though sorrows
fall like rain, and
troubles swarm like
bees about a hive;
Ishall believe the
heights for which I
strive are only
reached by anguish
and by pain; and
though I
groan and tremble
with my crosses, I
yet shall see through
my severest losses,
the greatr pain.
- Nuzhat
यह मिलना
यह मिलना भी क्या मिलना हुआ,
जज़बों से लदबद जब दिल ना हुआ,
हर उम्मीद की कलि लहराती रही,
एक अरमान का ना खिलना हुआ|
- मुश्ताक़
जज़बों से लदबद जब दिल ना हुआ,
हर उम्मीद की कलि लहराती रही,
एक अरमान का ना खिलना हुआ|
- मुश्ताक़
रिश्ता
बरहा तुम्हारी चुप्पी
घनी रात बनकर
छा जाती है|
तबतबतुम्हारे
हँसते अल्फ़ाज़
जुग्नू से फुदककर
अन्धेरे में
घुल जाते हैं|
वक़्त से शिकस्ता
यादें जवान होते ही,
फैल कर अफ़साना
बनती हैं|
ख़यालों से
महीनतर है हमारा
यह नाज़ुक रिश्ता|
- मुश्ताक़
(बरहा - often; जुग्नू - firefly; फुदकना - to frisk around; शिकस्ता - defeated; महीनतर - finer)
घनी रात बनकर
छा जाती है|
तबतबतुम्हारे
हँसते अल्फ़ाज़
जुग्नू से फुदककर
अन्धेरे में
घुल जाते हैं|
वक़्त से शिकस्ता
यादें जवान होते ही,
फैल कर अफ़साना
बनती हैं|
ख़यालों से
महीनतर है हमारा
यह नाज़ुक रिश्ता|
- मुश्ताक़
(बरहा - often; जुग्नू - firefly; फुदकना - to frisk around; शिकस्ता - defeated; महीनतर - finer)
Monday, April 5, 2010
ख़ौफ़ के बादल
ख़ौफ़ के बादल उभर आते हैं,
बिना ख़ौफ़...
और मैं गुमसुम देखता रहता हूँ|
यह कभी भाँप की चादर से
बारीक़ होते हैं तो कभी
समुन्दर से गहरे|
कभी तसव्वुर से भी तेज़तर
और बर्क़ से ज़्यादा तबहियफ़ता,
या फिर बढ़ती उम्र से
खामोश पर पुर असर|
यह बरहा लौटकर,
बस जातीं हैं मौसम की
ज़िद्दी रंगीनियों की तरह|
मुश्ताक़
बिना ख़ौफ़...
और मैं गुमसुम देखता रहता हूँ|
यह कभी भाँप की चादर से
बारीक़ होते हैं तो कभी
समुन्दर से गहरे|
कभी तसव्वुर से भी तेज़तर
और बर्क़ से ज़्यादा तबहियफ़ता,
या फिर बढ़ती उम्र से
खामोश पर पुर असर|
यह बरहा लौटकर,
बस जातीं हैं मौसम की
ज़िद्दी रंगीनियों की तरह|
मुश्ताक़
રડ્યો હશે...
દરિયો અથાગ રડ્યો હશે...
એટલે જ અટલો ખારો હશે
અકાશ અથાગ વરસ્યૂ હશે...
એટલે જ અટલૂ ખાલી હશે
- શિલ્પા દેસાઇ
એટલે જ અટલો ખારો હશે
અકાશ અથાગ વરસ્યૂ હશે...
એટલે જ અટલૂ ખાલી હશે
- શિલ્પા દેસાઇ
क़यामत
ज़मीन फट जाए,
आगबबूले उछल निकले,
पहाड़ों को डुबोई समन्दर,
इसे मैं क़यामत नहीं समझता|
तुम न र्हो मेरी नज़्म सराहने,
सोच के लरज़ता हूँ|
- मुश्ताक़
आगबबूले उछल निकले,
पहाड़ों को डुबोई समन्दर,
इसे मैं क़यामत नहीं समझता|
तुम न र्हो मेरी नज़्म सराहने,
सोच के लरज़ता हूँ|
- मुश्ताक़
तमाशा
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा,
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा -
और जब समझ आई तो दुनिया जको तमाशा समझा
- 'बेख़ुद' दहल्वी
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा -
और जब समझ आई तो दुनिया जको तमाशा समझा
- 'बेख़ुद' दहल्वी
आतिश-ओ-ज़हन
न ग़ैरियत काम आई,
न ख़लिश कम हो पाई,
कमनसीबी के कारवाँ लपकते रहे,
न अक़्ल काम आई,
न आतिश-ओ-ज़हन कम हो पाई|
- मुश्ताक़
न ख़लिश कम हो पाई,
कमनसीबी के कारवाँ लपकते रहे,
न अक़्ल काम आई,
न आतिश-ओ-ज़हन कम हो पाई|
- मुश्ताक़
ख़लिश
ज़िन्दगी की नौटंकी हंसाती रुलाती है,
दिल्लगी की ज़ोरतलबी सहलाती सुलाती है,
ख़लिश जब आ टपके तन्हाई के आग़ोश में,
रिन्दगी की जोहुकमी फुसलाती बुलाती है|
- मुश्ताक़
दिल्लगी की ज़ोरतलबी सहलाती सुलाती है,
ख़लिश जब आ टपके तन्हाई के आग़ोश में,
रिन्दगी की जोहुकमी फुसलाती बुलाती है|
- मुश्ताक़
वजूद क मक़सद
पुछा ख़ुदा ने बता तेरा वजूद क मक़सद -
मुसलसल् ख़्वाहिशों का हवस,
या मेरी बरकत क पुर-असर इस्तेमाल?
- रामेश & मुश्ताक़
मुसलसल् ख़्वाहिशों का हवस,
या मेरी बरकत क पुर-असर इस्तेमाल?
- रामेश & मुश्ताक़
कुछ इस तरह
कुछ इस तरह मैं तुम्हें
अपने साथ ले चला हूँ
जैसे मेरे वजूद में
एक ज़बरदस्त सूरख हो,
एक ख़लिश जो परदा-नशीन
और ख़्वाबिदा हो|
क्यों न उम्र सितम ढाये,
बुज़ुर्गी खण्डर कर दे
मेरी शक़्सियत को,
तुम्हारा शबाब मुझे
अन्दर से झुलसता रहेगा|
- मुश्ताक़
अपने साथ ले चला हूँ
जैसे मेरे वजूद में
एक ज़बरदस्त सूरख हो,
एक ख़लिश जो परदा-नशीन
और ख़्वाबिदा हो|
क्यों न उम्र सितम ढाये,
बुज़ुर्गी खण्डर कर दे
मेरी शक़्सियत को,
तुम्हारा शबाब मुझे
अन्दर से झुलसता रहेगा|
- मुश्ताक़
इश्क़ मुबारक
ग़ैरों में हैं जो शाद
उन्हें इश्क़ मुबारक,
जिनको नहीं तन्हा
हम याद आए
उन्हें इश्क़ मुबारक,
मासूम से अरमानों
की मासूम सी दुनिया
जो कर गया बरबाद
उसे इश्क़ मुबारक|
आशिक़ा 'तन्हा'
उन्हें इश्क़ मुबारक,
जिनको नहीं तन्हा
हम याद आए
उन्हें इश्क़ मुबारक,
मासूम से अरमानों
की मासूम सी दुनिया
जो कर गया बरबाद
उसे इश्क़ मुबारक|
आशिक़ा 'तन्हा'
सफ़ेद लिबास
सफ़ेद लिबास उनको मेरे जिस्म पर बहुत पसन्द था फ़राज़
आज मैं क़फ़न में लिपता हुआ हूँ, फिर वह रोता क्यों है?
- फ़राज़
आज मैं क़फ़न में लिपता हुआ हूँ, फिर वह रोता क्यों है?
- फ़राज़
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