बाँट रहे हो दुनिया भर से अपने ग़म,
पर ना जाने क्यों लगता है
सिर्फ़ हम ही से कह रहे हो,
जाने अनजाने में जो यह अपने
नसूर ज़ख़्म बेपरदाह कर रहे हो|
दर्द आपकी हक़ीक़त का
कुछ यूँ छू जाता है हमें,
लगता है जैसे जिस्म को जान से
मिला रहे हो|
- अश्लेशा
Tuesday, October 26, 2010
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