Friday, November 5, 2010

Incomplete riffs

मिलना और बिछड़ना,
खिलना और बिखरना,
हँसना और निखरना,
फूलना और सँवरना,
मक़सदी हयात गर्च

*

जी और क्या होगा,
उगना और उभरना,
उड़ना और उमटना...

*

वह याराना जिसमें तलब-ए-वस्ल* ना हो,
एक शानदार दस्तरक़्वान** है,
जहाँ सिर्फ़ तस्वीरें परोसी गईं हो
*craving for a tryst
** tablespread

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