हर दिन खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक़्त नहीं|
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं|
माँ की लोरी का अहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं|
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं|
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं|
ग़ैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं|
आँखों में है नीन्द बड़ी,
पर सोने का वक़्त नहीं|
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं|
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
कि थकने का भी वक़्त नहीं|
पराये अहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं|
तू ही बता ए ज़िन्दगी,
इसज़िन्दगी का क्या होगा,
क हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं|
- अज्ञात
Tuesday, November 2, 2010
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