The librarian stares at him for a while, then asks, "Who's gonna bring it back?"
Tuesday, November 22, 2011
Big City Blues
The scariest facet of big city blues,
metropolitan dehumanisation is the sad
realisation that people have no time for you.
- Max
दोण थेंब
नमस्कार...
मी एक कविता सादर करत आहे...
माझ्या कवितेचे नाव आहे:
"दोण थेंब"
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टुपुक...टुपुक...
धन्यवाद!
वह चले आते हैं
वह चले आते हैं कब्रस्तान सी मन्हूस संजीदगी में पैवस्त,
हमें शरारती मुस्कान छुपाना मुहाल है |
- मुश्ताक़
यह ना कहना
यह न कहना दुआओं में मेरी, असर नहीं
राहे-ज़ीस्त में रह कर परेशान, करनी हमें बसर नही
- मुश्ताक़
राहे-ज़ीस्त में रह कर परेशान, करनी हमें बसर नही
- मुश्ताक़
अपने आप से सामना
अपने आप से सामना हो गया आज,
अक्स भी बेगाना हो गया आज,
उफ़ यह ज़िन्दगी दोष भी किसे दे,
हर लम्हा फ़साना हो गया आज|
- मित्रा पटेल
(Tweaked by Max Babi)
प्यार बारहा
Love can sometimes be magic.
But magic can sometimes...
just be an illusion.
- Ashleshaa
प्यार बारहा तिलिस्मात सा होता है,
और तिलिस्मात बरह ख़ुशफ़हमी!
- मुश्ताक़
जलते हुए सूरज की ज्वालाओं
जलते हुए सूरज की ज्वालाओं को क्या देखोगे,
दिल में जल रहे शोलों को देखो तुम,
साँसें तो बस नाम की हैं,
तुझसे जुदा होकर भी इस दिल में अगर जान है,
तो इस करिश्मे की वजह हो तुम|
- MSS
ज़िन्दगी तस्वीर भी है, तक़दीर भी
किसी ने क्या ख़ूब कहा है:
ज़िन्दगी तस्वीर भी है, तक़दीर भी|
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर
और अनचाहे रंगों से बने तो तक़दीर|
- अनजान
જીવન ની હકીકત
જીવન ની હકીકત પૂછો છો તો મોત સુધી ની રાહ જુવો...
જીવન તો અધૂરૂ પુસ્તક છે, એનુ વિવેચન કોણ કરે
- અજ્ઞાત
Tuesday, November 15, 2011
एक दिन रुतबा मैं भी दिखाऊँगा
एक दिन रुतबा मैं भी दिखाऊँगा,
जी भर के सब को मैं भी रुलाऊँगा,
पैदल चल रहे होंगे दोस्त सारे,
और मैं आराम से कन्धों पर लेट कर जाऊँगा!
- अनजान
जी भर के सब को मैं भी रुलाऊँगा,
पैदल चल रहे होंगे दोस्त सारे,
और मैं आराम से कन्धों पर लेट कर जाऊँगा!
- अनजान
तेरे बज़्म में आने से
तेरे बज़्म में आने से ऐ साक़ी,
चमके मैक़दा,
जाम-ए-शराब चमके,
ज़र्रा-ज़र्रा नज़र आए मह-पारा,
गोशा-गोशा मिस्ल-ए-आफ़्ताब चमके|
मेरी जान यह शान सुभान-अल्लाह,
तेरा हुस्न यूँ ज़ेर-ए-नक़ाब चमके,
जैसे शम्मा किन्दिले में रोशन,
जैसे बादलों में माहताब चमके|
मैख़ार हैं सारे उदास बैठे,
सूनी पडी है तेरे बग़ैर महफ़िल,
तू जो आए तो साग़र-ओ-जाम चमके,
तू पिलाए तो रंग-ए-शराब चमके|
ला-ए-ताब इतनी चश्म-ए-शौक क्यों कर,
देखे कौन उसके बेनक़ाब जलवे,
जिसके रूह-ए-दरक्शा में है सूफ़ी,
बढ़ के ज़ुल्फ़ से कहीं नक़ाब चमके!
- हीर
चमके मैक़दा,
जाम-ए-शराब चमके,
ज़र्रा-ज़र्रा नज़र आए मह-पारा,
गोशा-गोशा मिस्ल-ए-आफ़्ताब चमके|
मेरी जान यह शान सुभान-अल्लाह,
तेरा हुस्न यूँ ज़ेर-ए-नक़ाब चमके,
जैसे शम्मा किन्दिले में रोशन,
जैसे बादलों में माहताब चमके|
मैख़ार हैं सारे उदास बैठे,
सूनी पडी है तेरे बग़ैर महफ़िल,
तू जो आए तो साग़र-ओ-जाम चमके,
तू पिलाए तो रंग-ए-शराब चमके|
ला-ए-ताब इतनी चश्म-ए-शौक क्यों कर,
देखे कौन उसके बेनक़ाब जलवे,
जिसके रूह-ए-दरक्शा में है सूफ़ी,
बढ़ के ज़ुल्फ़ से कहीं नक़ाब चमके!
- हीर
भुलाता लाख हूँ लेकिन
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं एलाही,
तर्क-ए-उल्फ़त वह क्यों कर याद आते हैं?
ना छेड ए हमनशीन कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़साने,
शराब-ए-बेहुदी के मुझको साग़र याद आते हैं|
नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं, तो अकसर याद आते हैं|
हक़ीक़त खुल गयी हसरत तेरे तर्क-ए-मुहब्बत की,
तुझ को तो अब वह पहले सी भी बढ़कर याद आते हैं|
- हसरत मोहानी
(पाकिस्तानी शा`यर, जिनके
"दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं,
एक दिलरुबा है दिल में जी हूरों से कम नहीं"
को महदी हसन ने ज़ुबाँ दी है)
तर्क-ए-उल्फ़त वह क्यों कर याद आते हैं?
ना छेड ए हमनशीन कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़साने,
शराब-ए-बेहुदी के मुझको साग़र याद आते हैं|
नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं, तो अकसर याद आते हैं|
हक़ीक़त खुल गयी हसरत तेरे तर्क-ए-मुहब्बत की,
तुझ को तो अब वह पहले सी भी बढ़कर याद आते हैं|
- हसरत मोहानी
(पाकिस्तानी शा`यर, जिनके
"दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं,
एक दिलरुबा है दिल में जी हूरों से कम नहीं"
को महदी हसन ने ज़ुबाँ दी है)
Wednesday, November 9, 2011
THOUGHTS and PRAYERS
The nicest place to be, is in someone's THOUGHTS, and the safest place to be is in someone's PRAYERS...
You are there in both, my thoughts and prayers.
- Anonymous
You are there in both, my thoughts and prayers.
- Anonymous
Trees
Trees as tall as five stories
stare at me like
slightly offended priests.
Nature's mobiles,
like extra glamorous women,
their torso and limbs exuding
harmonious riffs adding
to untimed symphonies.
On a windless morning,
their quiet repose seems
more a readiness than fatigue.
A perpetual delight.
- Max
stare at me like
slightly offended priests.
Nature's mobiles,
like extra glamorous women,
their torso and limbs exuding
harmonious riffs adding
to untimed symphonies.
On a windless morning,
their quiet repose seems
more a readiness than fatigue.
A perpetual delight.
- Max
Instruments
Like multiple foetuses carried over-term,
my dreams comatose and unfructified,
peep through ravaged faces visible only
to me in chaos of an abstract painting —
The progenitor couldn't care less
like mother hung up on football, not genesis.
Are we all then mere instruments?
my dreams comatose and unfructified,
peep through ravaged faces visible only
to me in chaos of an abstract painting —
The progenitor couldn't care less
like mother hung up on football, not genesis.
Are we all then mere instruments?
Untitled Sonnet
I'll never know if you ever existed
Or reality might have been tight-fisted
Should a fevered mind be credited
Perhaps cerebral fecundity got twisted?
My shadow like some knowing cloud clung
To spacetime faults where, from past future sprung
While brooks ajangle danced and treebirds sung
Together they worked in harmony, my heart wrung.
You couldn't have been just an unfeeling pot
Dreams flower in sleep, untouched they rot
Your eyes, windows to your soul could spot
Frigid silences, leaping emotions and pauses hot
Weren't we simply children playing on a warm beach
Or cynical adults mingling with sympathy out of reach?
Or reality might have been tight-fisted
Should a fevered mind be credited
Perhaps cerebral fecundity got twisted?
My shadow like some knowing cloud clung
To spacetime faults where, from past future sprung
While brooks ajangle danced and treebirds sung
Together they worked in harmony, my heart wrung.
You couldn't have been just an unfeeling pot
Dreams flower in sleep, untouched they rot
Your eyes, windows to your soul could spot
Frigid silences, leaping emotions and pauses hot
Weren't we simply children playing on a warm beach
Or cynical adults mingling with sympathy out of reach?
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